Thursday, September 16, 2010

तुम हो तो... मैं भी

 

आसमान या के सारी ज़मीन
समंदर या के हवा या तूफ़ान
बिखरे हैं चारों ओर
फैला के यही शोर
कि
तुम्हारे लिए ही तो हैं हम...
 
मुझे अपने आगे सभी पिद्दी समझ आते हैं
मुझे खुदाई के सपने नहीं आते हैं
 ना तो है जन्नत कि जरूरत
ना बाकि है किसी ख्वाहिश का निशान
ना बाकि है जेहन में किसी खुदा कि इबादत
 
लेकिन
पांच दिनों से
ना तो नींद
ना भूख
ना प्यास
कहाँ का आसमान?, कैसा समंदर?
मुझे तो...
'मैं' ही ना मिला
जन्नत तो दोज़ख में छुप गयी
आ जाओ
इस बियांबान को फिर से दो अपनी सांस
अपने होने का एहसास
 
क्यूंकि
तुम हो 
तो सब कुछ है...
मैं भी|| 

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